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ये रुत बौराई है

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3.6

ये रुत बौराई है१- पत्तों के कोरों सेबूंद बूंद जल झरतातन मन रोमांच भरेअद्भुत वह शीतलता पाकर मकरंद- धूलि बहकी पुरवाई है ये रुत ............... २- अम्बर के सीने परमेघों का मेला है सस्वर खुशियाँ ...