pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

यादों का पागलखाना

4
5

जब भी तेरी वफ़ाओं का वह ज़माना याद आता है, सच कहूँ तो तेरी यादों का पागलखाना याद आता है। कसमों की जंजीर जहां पर, वादों से बनी दीवारें हैं झूठ किया है खंज़र से तेरे नाम की उन पर दरारें है। टूट चुका ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
एस. कमलवंशी
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है