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मुझे पता है सुनोगे नही ग़ज़ल ए ज़ख्म मेरी तुम, लेकिन फिर भी मिलोगे कभी तो ज़ख्मों की नुमाइश तो कर ही दूंगी। मेरी फरियाद तो तुमने आज तक नहीं सुनी, लेकिन एक बार फिर गुज़ारिश तो कर ही दूंगी। मुझे ...