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वो जो एक फ़िल्म थी .. घरौंदा

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यूँ तो पाँव के नीचे धरती और सर के ऊपर आकाश तो सब के संग रहता है फिर भी हर किसी के भीतर एक अपना स्वयं का ऐसा टुकड़ा सहेजने की चाह सदा होती है जहाँ वो अपने हिस्से का संसार रचा-बसा कर उसे अपना ‘घरौंदा’ कह सके. आज (13 मई 2017) आकाशवाणी दिल्ली के एफ़.एम. गोल्ड पर इसी आशय को लेकर फ़िल्म ‘घरौंदा’ (1977) पर जीवन्त चर्चा हुयी. ग्रामीण परिवेश से निकल कर नगर और महानगर की भूल-भुलैया में भटकते लोगों की दिनचर्या में अपना एक ठौर पा लेने भर के जतन की ही कथा है ‘घरौंदा’. मुम्बई में एक ही कार्यालय में कार्य करते ...