यूँ तो पाँव के नीचे धरती और सर के ऊपर आकाश तो सब के संग रहता है फिर भी हर किसी के भीतर एक अपना स्वयं का ऐसा टुकड़ा सहेजने की चाह सदा होती है जहाँ वो अपने हिस्से का संसार रचा-बसा कर उसे अपना ‘घरौंदा’ ...
यूँ तो पाँव के नीचे धरती और सर के ऊपर आकाश तो सब के संग रहता है फिर भी हर किसी के भीतर एक अपना स्वयं का ऐसा टुकड़ा सहेजने की चाह सदा होती है जहाँ वो अपने हिस्से का संसार रचा-बसा कर उसे अपना ‘घरौंदा’ ...