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वक्त के आने तक

3.7
257

झुरझुरी छोड़ती हवाएँ हौले से बोलीं दिल की बेकली बेचैन टहनियों से लटकी हुई गाँव के उस मचान तक धकिया ले गये जहाँ बैठकर सूरज-चाँद से हुडदंग मचाये पल में ऐसा लगा जैसे बबुल के पेड कसमसाये उनकी यादों ...

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लेखक के बारे में
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डॉ.सुनीता

*मेरा कोई स्थायी ठीकाना नहीं है क्योंकि यात्रीचर हूँ। पेशे से शिक्षक, दिल-दिमाग से घुम्मकड़, शौक पढ़ने का है। जूनून पेड़-पौधों को रोपने का है। पागलपन, गाँव-गाँव की पगडंडियों को जोत लेने की है। गुमनाम साहित्यकारों के दहलीज पर पहुँचना और ज़ोर-ज़ोर से सांकल खटखटाना है। आदत से एकदम फक्कड़ हूँ।* उपरोक्त सबके बावजूद दक्षिणी दिल्ली के जंगलों में स्थायी निवास है। 🌺🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌺

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