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विजया

4.4
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ट्रिंग-ट्रिंग-ट्रिंग...घंटी बजे जा रही थी | सविता किचेन में थी | “उफ़ ! अभी तो उठाया था, अब कौन है |” यों बड़बड़ाती हुई वह दौड़कर फ़ोन तक आयी | सविता ने फ़ोन उठाया तो उधर रवि था, उसका पति | सविता झुंझलाहट ...

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लेखक के बारे में
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राहुल देव

उ.प्र. के अवध क्षेत्र के महमूदाबाद कस्बे में 20 मार्च 1988 को का जन्म | शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ और बरेली कॉलेज, बरेली से | साहित्य अध्ययन, लेखन, भ्रमण में रूचि | अभी तक एक कविता संग्रह, एक कहानी संग्रह तथा एक बाल उपन्यास प्रकाशित | पत्र-पत्रिकाओं एवं अंतरजाल मंचों पर कवितायें/ लेख/ कहानियां/ समीक्षाएं आदि का प्रकाशन | इसके अतिरिक्त समकालीन साहित्यिक वार्षिकी ‘संवेदन’ में कार्यकारी संपादक | सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन |

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    15 जून 2018
    बहुत खूब। मेरी रचना भी पढ़ें।
  • author
    04 अप्रैल 2017
    अच्छी कहानी! कुछ संयोगों को कहानी में इसतरह डाला गया है, कि अविश्सनीय लगता है। वास्तविकता के पुट थोड़ा डालना चाहिए था, तो कहानी और भी अच्छी लगती।
  • author
    Neha Seth
    09 मार्च 2018
    really it's awsm story... dil ko chhu gyi...
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    15 जून 2018
    बहुत खूब। मेरी रचना भी पढ़ें।
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    04 अप्रैल 2017
    अच्छी कहानी! कुछ संयोगों को कहानी में इसतरह डाला गया है, कि अविश्सनीय लगता है। वास्तविकता के पुट थोड़ा डालना चाहिए था, तो कहानी और भी अच्छी लगती।
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    Neha Seth
    09 मार्च 2018
    really it's awsm story... dil ko chhu gyi...