संस्कृत में एक वाक्य जो हमेशा हमें हौंसला देती रही, वह वाक्य है - ‘वीर भोग्या वसुंधरा' । अकसर मैं जहाँ बैठता वहाँ यह वाक्य जरूर लिखा होता। मेरी हर पुस्तक या फिर नोट बुक पर ये मिल जाएगा। मेरे साथी ...
सतेंद्र जी, अभिभूत हूँ आपका सारगर्भित आलेख पढ़कर। यूँ तो संत महात्मा कहते हैं कि धरती किसी की भी नहीं, लोग आते हैं चले जाते हैं पर इस प्रवास के दौरान शक्तिशाली लोग समस्त सुख भोगकर जाते हैं तो आलसी और असमर्थ नारकीय जीवन जीकर जाते हैं। सुख शक्ति के दोहन से ही मिलता है। बहुत भावपूर्ण लिखा आपने। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई एक उत्तम लेख के लिए। बस अशुद्धियां खटकती हैं। जरुर ध्यान दें। 🙏🙏
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