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उस-पार

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प्रेम की राह पर चलकर अहं को मार जाना है। तुम्ही को जीतना तुमसे स्वयं को हार जाना है। यहाँ की जान बैठे अब वहाँ की जानना बाकी, हमारी नाव बन जाओ हमें उस पार जाना है। ...

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लेखक के बारे में

जयशंकर द्विवेदी'विश्वबंधु' मूल निवासी फैजाबाद ,उ.प्र. अध्यापक/कवि/कलाकार/स्वतन्त्र पत्रकार, अध्यापक राजकीय विद्यालय, नई दिल्ली, मो-9838656748

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