
प्रतिलिपिईंट सीमेंट की बनी दड़बानुमा इमारत की दर्जनों खिड़कियाँ उस बदनाम सड़क की तरफ खुलती थीं, जहाँ शाम डूबते डूबते रंगीनियाँ जवान होने लगतीं थीं। हर खिड़की से एक उदास लिपा पुता चेहरा होंठो पर कुछ अश्लील फिकरे और आँखों में जबरन निमंत्रण का भाव समेटे ग्राहकों को रिझाने में व्यस्त रहता था। इन्ही दर्जनों चेहरों में एक चेहरा उसका भी था। पता नहीं कैसे लेकिन उसके चेहरे में अभी भी मासूमियत बची रह गयी थी। सारी सखियाँ उसे बेवकूफ भोली और नादान कह कह कर चिढ़ाती रहतीं, वह थी भी ऐसी ही। जिस बाजार में लोग चेहरे तक याद ...
रिपोर्ट की समस्या
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