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टूटा हुआ दिल

4.4
7616

सुमन, अरे ओ सुमन, न जाने कहाँ चली गयी ये अभी तो यहीं थी, कहते हुए सुमन की माँ छत पर आई, और हल्के भीगे हुए कपड़ों को उठाने लगी, आज क्या हुआ सुमन की माँ इतना क्यों चिल्ला रही सुमन को? बगल की छत से विनी ...

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लेखक के बारे में
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Nidhi Jain
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Sudha Ramavat
    11 ஏப்ரல் 2018
    हमारी बेटियां अगर संकर्षण हों ,तो हमें कभी सर झुकाने की जरूरत नहीं।
  • author
    Sufiyan Bagwan
    10 ஜூன் 2018
    right decision
  • author
    nidhi jain
    20 மார்ச் 2018
    Bhut khoob👌👌👌
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  • author
    Sudha Ramavat
    11 ஏப்ரல் 2018
    हमारी बेटियां अगर संकर्षण हों ,तो हमें कभी सर झुकाने की जरूरत नहीं।
  • author
    Sufiyan Bagwan
    10 ஜூன் 2018
    right decision
  • author
    nidhi jain
    20 மார்ச் 2018
    Bhut khoob👌👌👌