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तुम्हारी नज़रे...

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3.5

इन नजरों ने कैसा है सितम ढाया, हम से हमारा है चैन चुराया . गुस्ताख नजरों की गुस्ताखीयोंसे हम रह गए अब बस नाम के ही......|| चलता जाए ये कारवा, नाम लिख आया मैं  परवानो सा कैसा है  जादु इन नजरों ...