तुम अगर डाय़री के पन्नो से निकल कर बाहर आ पाते तो मैं तुमसे पूछती..... कि तुम बात क्यों हो .. जज़्बात क्यों नहीं ।। तुम बस ख्वाब क्यों ... हकीकत क्यों नहीं ।। तुम बस सहारा क्यों... मेरा किनारा क्यों ...
तुम अगर डाय़री के पन्नो से निकल कर बाहर आ पाते तो मैं तुमसे पूछती..... कि तुम बात क्यों हो .. जज़्बात क्यों नहीं ।। तुम बस ख्वाब क्यों ... हकीकत क्यों नहीं ।। तुम बस सहारा क्यों... मेरा किनारा क्यों ...