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तुम भी गुस्से पर अपने पेपर वेट रखो..

4.1
1317

आओ समेटें अपनी2 खामोशी, देखें तो पहले कौन चहकता आता है.. वो देखो मेरा गोलू मोलू चाँद गया.. वो देखो तुम्हारा सूरज जलता आता है.. अभी हवा को पता नहीँ है ये मसला.. वरना बात कहाँ की कहाँ उड़ जाती.. तुम ...

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लेखक के बारे में

मैं उज्जैन की रहने वाली हूँ ,मेरे माता पिता का नाम श्री रमेश भावसार और श्रीमती शकुंतला भावसार है। मैंने जावरा पॉलिटेक्निक से इलेक्ट्रिकल विषय में डिप्लोमा व , साहित्य में रूचि होने के कारण मैंने हिंदी साहित्य में पार्ट टाइम एम.ए. भी किया है। फ़िलहाल कंस्ट्रक्शन कंपनी में कार्यरत हूँ। लेखन कार्य शौकिया तौर पर करती हूँ। मुझे पढ़ना बहुत पसंद है , वैसे ज़्यादातर मुझे ग़ज़लें पढ़ने का शौक है। बशीर साब और दुष्यंतकुमार मेरे पसंदीदा शायर हैं। बाकी मुझे सबकुछ पढ़ना अच्छा लगता है। जो भी दिल को छू जाए , वो मेरा पसंदीदा हो जाता है।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Ashit Sharan "Ashit"
    02 सितम्बर 2021
    रचना में सुधार की आवश्यक्ता है। प्रयास सही है। शब्दों के उचित चयन की जरूरत है। प्रयास जारी रखे।
  • author
    Mahendra Kumar Malviya
    08 नवम्बर 2022
    ग़ुस्सा बड़ा भारी होकर भी हल्कापन लिये होता है और समय पर पेपरवेट मिलता ही नहीं।
  • author
    badrilal verma
    28 अक्टूबर 2015
    aur aahista kijiye baate... 
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    Ashit Sharan "Ashit"
    02 सितम्बर 2021
    रचना में सुधार की आवश्यक्ता है। प्रयास सही है। शब्दों के उचित चयन की जरूरत है। प्रयास जारी रखे।
  • author
    Mahendra Kumar Malviya
    08 नवम्बर 2022
    ग़ुस्सा बड़ा भारी होकर भी हल्कापन लिये होता है और समय पर पेपरवेट मिलता ही नहीं।
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    badrilal verma
    28 अक्टूबर 2015
    aur aahista kijiye baate...