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तुलसी मैं तेरे आंगन की

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सुनों~ कांपती आवाज से तुम्हें पुकार रही हूँ, अपने अर्धांगनी होने का कर्तव्य निभा रही हूँ। दिन की धूप बदन में बदन छुपा रात में रातरानी बन रही हूँ। तुम्हारी जिंदगी में नींव का पत्थर बन तुम्हें ...