तू मिलने लगा है अब मुझसे बेगानों की तरह ख्वाहिशें रद्द हुई जाती हैं उड़ानों की तरह एक दौर था की बादशाहों से रहते थे तेरे दिल में आज निकाला गया हूं ग़ैरज़रूरी सामानों की तरह तेरी उदास आँखों का मुझे मुस्कुरा कर देखना और मेरा लुटते चले जाना ख़ज़ानों की तरह सिर्फ ख़याल भर से ही शब्-ए-विसाल की तेरे सजने लगता हूँ शाम ही से दुकानों की तरह तुम ही तो हो जो बदल बैठी हो निगाहें मुझसे मुझसे तो बदला भी नहीं जाता है ज़मानों की तरह एक तेरे बाद वीरानियाँ ही हिस्से में आयी तनहा पड़ा हूँ टूटे मकानों की तरह ...