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तो तुम्हारा क्या कसूर ?

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हमने जो चाहा जब जब चाहा , ना मिला , तुम्हारा इस में क्या कसूर ? तुम नसीब थी ; दो ही कदम आगे थे हम तुमसे -- खड़े होकर , पकड़ना था हमें तुम्हारी कलायियो को ; हम चलते रहे तुम्हारी - मेरी राहें ना ...