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तन्हाईयों के ढेर में ख्वाहिश दबी रही,

4.2
3363

तन्हाईयों के ढेर में ख्वाहिश दबी रही, जैसे कि रेगिस्तान में बाकी नमी रही । मुझको बिठाके चल दिया ऑटो जबउसको छोड़, मैं देखता रहा,वो मुझे देखती रही । रोते रहे कुछ लोग और जलते रहे कुछ घर, पर निंदकों की बस्तियों में रौशनी रही। हल है ये लोकतंत्र सियासत के हाथ का, जनता ही इस जुए से मगर जूझती रही । सूखे के बावज़ूद भी उस दूब को देखो, जाने वो इस अकाल में कैसे बची रही । बचपन गया, माँ भी गई,कोल्हू - कुएं गए, अब तो न रहट और न वो ढेकुली रही । ...

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समीक्षा
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    20 फ़रवरी 2024
    ख्वाहिशों के ढेर में कुछ कमी रही होंठो में मुस्कुराया नही,आंखों पर नमी बनी रही।
  • author
    Jai Sharma
    18 फ़रवरी 2025
    राधे राधे मिश्रा जी बहुत बढ़िया बहुत सुंदर रचना जी
  • author
    नीरज आहुजा
    18 मार्च 2021
    बहुत बहुत खूबसूरत 👌👌👌👌👌
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    20 फ़रवरी 2024
    ख्वाहिशों के ढेर में कुछ कमी रही होंठो में मुस्कुराया नही,आंखों पर नमी बनी रही।
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    Jai Sharma
    18 फ़रवरी 2025
    राधे राधे मिश्रा जी बहुत बढ़िया बहुत सुंदर रचना जी
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    नीरज आहुजा
    18 मार्च 2021
    बहुत बहुत खूबसूरत 👌👌👌👌👌