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तन शांति का अनुभव करे, मन शांति का अनुभव करे

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4.2

मस्तिस्क की विव्हल तरंगों में शांत रस भर दें, नयनों की अंजुली में प्रेम-सुधा-रस पान कर दे, वक्षस्थल में अनुपम शांति का निर्वहन हो, द्वन्दातित बन अभितज्य बनूँ, समग्र देह में शिरोत्पाद शांति का वरण हो, ...