पेड़ का अभी नव अंकुर हूँ अभी जो एक ऋतु देखना चाहता है उस गर्मी में छाव पथिक को देना चाहता हैं, सावन की हरियाली भी बनना है उसको, फिर पतझड़ सा झड़ना भी चाहता हूँ, बस एक पत्ती जो एक ऋतु देखना चाहता हैं।
सारांश
पेड़ का अभी नव अंकुर हूँ अभी जो एक ऋतु देखना चाहता है उस गर्मी में छाव पथिक को देना चाहता हैं, सावन की हरियाली भी बनना है उसको, फिर पतझड़ सा झड़ना भी चाहता हूँ, बस एक पत्ती जो एक ऋतु देखना चाहता हैं।
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