pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

सुधार

4.1
1151

मन्दिर आते जाते गोपाल बाबू अक्सर बगीचे के पास ठिठक जाते थे जो मन्दिर के रास्ते में पड़ता था। रंगबिरंगे सुन्दर फूल उन्हें जितना आकर्षित करते थे।वहाँ लगी तख्ती उनकी आँखों को उतना ही खटकती थी। न चाहते हुए भी उनकी दृष्टि उसपर पड़ ही जाती थी।उसपर लिखा था - 'कृपया फुल न तोड़ें।' एक गलत शब्द उनकी सारी बैचेनी का कारण था।असमंजस में कुछ दिन यूँही गुजर गए। आखिर उनसे रहा न गया ।एक दिन वे अपने साथ पेंट के दो डिब्बे व एक ब्रश लेते आए और देखते ही देखते तख्ती पर लिखे वाक्य को सुधार दिया। उन्होनें खुद से वायदा ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    BRIJ BHOOSHAN KHARE
    06 मई 2018
    लेखनी का प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है.
  • author
    सुनील चंद्र
    13 जून 2020
    सुधार के लिये जहाँ चाह वहाँ राह
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    23 नवम्बर 2019
    अत्यन्त ही प्रेरक कहानी ।
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    BRIJ BHOOSHAN KHARE
    06 मई 2018
    लेखनी का प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है.
  • author
    सुनील चंद्र
    13 जून 2020
    सुधार के लिये जहाँ चाह वहाँ राह
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    23 नवम्बर 2019
    अत्यन्त ही प्रेरक कहानी ।