मन्दिर आते जाते गोपाल बाबू अक्सर बगीचे के पास ठिठक जाते थे जो मन्दिर के रास्ते में पड़ता था। रंगबिरंगे सुन्दर फूल उन्हें जितना आकर्षित करते थे।वहाँ लगी तख्ती उनकी आँखों को उतना ही खटकती थी। न चाहते हुए भी उनकी दृष्टि उसपर पड़ ही जाती थी।उसपर लिखा था - 'कृपया फुल न तोड़ें।' एक गलत शब्द उनकी सारी बैचेनी का कारण था।असमंजस में कुछ दिन यूँही गुजर गए। आखिर उनसे रहा न गया ।एक दिन वे अपने साथ पेंट के दो डिब्बे व एक ब्रश लेते आए और देखते ही देखते तख्ती पर लिखे वाक्य को सुधार दिया। उन्होनें खुद से वायदा ...
रिपोर्ट की समस्या
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