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स्त्री केसर! और पुंकेसर!

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तुम्हारे होने की स्मृतियों का सुख इतना ज्यादा है की कभी कभी डर जाता हूं.... तुम संयोग मात्र हो या संचित कर्मों की परिणति किसी संचित कर्मों का पवित्र जल कुंड सूख गया तो? ...

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पारस प्रणव

एक तुम्हारा होना.... खुशियों से भर देता है।

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