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स्त्री का आँचल

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देखो आँचल क्यों उड़ते जाये, घबराये शरमाये, बहते हवा के झोखे के संग। आसमान में लहराये।। कभी वो लहरे धरा तक, कभी वो लहरे मचल-मचल कर। कभी वो खुद झुक जाए।। कभी वो छुपकर हवा को देखे, कपकपाती सी मुस्कान ...

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लेखक के बारे में
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Saumya Dubey

खुद के बारे में बस इतना ही जानती हूं, कि पढ़ना और पढ़ाना ही मेरे जीवन का आधार है। प्रतिलिपि से मैंने हजारों रचनाएं पढ़ी होगी। मुझे पढ़ने की आदत है।🙏🙏🙏

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