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स्थितप्रज्ञ

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आश्रम में गुरु जी रहते थे चेलों के साथ गूढ़ ज्ञान बतलाते थे उनको दिन और रात एक दिन एक शिष्य दौड़ा दौड़ा आया बोला सेठ बड़ी गैया आश्रम में देने आया । गुरु जी बोले अच्छा है ले लो उनका दान दुध दही का ...

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लेखक के बारे में
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पीयूष पाणि

कविताएँ मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं । अध्यापन का कार्य करता हूँ पर , भर विद्यार्थी बना रहने का प्रयास है । शब्दों का सफर दिन के प्रारंभ स समाप्ति तक चलता है फिर स्वप्न में सृजन.....

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