जीवन के एक असंतुलित पड़ाव पर आते ही दुनिया आपको भूल जाती है, रिश्ते नाम के रह जाते हैं और जिंदगी एक औपचारिकता मात्र रह जाती है। जैसे-जैसे वक्त बढ़ रहा है, लोगों से चिढ़ होने लगी है। जिम्मेदारियों का एहसास हो रहा है। अपने लोग अब अपने नहीं रहे। स्वार्थ ही सत्य है।
रिपोर्ट की समस्या
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