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शान्त-कपोत और अग्नि-युद्ध

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3.6

मेरी मुंडेर पर बैठा, कपोत का टोला, एकाएक सुनकर, धमाके की आवाज़, फड़फड़ा उठा.... उड़ने लगे रेत के बादल, उठने लगे अग्नि-पुंज, और छिड़ गया देखते–देखते एक अग्नि-युद्ध. सहमे से कपोत, कभी इस मुंडेर पर तो कभी उस ...