सावन आया झूम के, पर मन मेरा उदास है, भीगी पलकें मेरी, और आँखों में प्यास है। बादल गरजे खूब, बिजली भी चमकी, पर दिल की तन्हाई, अब और भी खमकी। बूंदें गिरी धरती पर, मिट्टी महकी खूब, पर मेरे हिस्से आया, ...
मैं एक आजाद पंछी थी,मां बाप के आंगन में उड़ती थी और खुश रहती थीं। लेकिन अब पिंजरे में हूं...... उड़ना चाहती हूं पहले के जैसे लेकिन जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी हुई हूं।
सारांश
मैं एक आजाद पंछी थी,मां बाप के आंगन में उड़ती थी और खुश रहती थीं। लेकिन अब पिंजरे में हूं...... उड़ना चाहती हूं पहले के जैसे लेकिन जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी हुई हूं।
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