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सरहदों को पहचाता नहीं क्यों तु भी परिंदे

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सरहदों को पहचाता नहीं क्यों तु भी परिंदे नादाँ आज जमाने ने खड़ा कर दिया इस बात पे तूफाँ दीवाना है या पागल औढ के मौत का कफ़न उड़े नादाँ तुझ पर जहरीली हवा की है कुटिल मुस्कान सरहद ना सही धर्म ही पहचान बना ...