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संयम धरा है धरती ने

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तुम तो विनाश रचाते हाहाकार मचाते तुमने कहाँ का संयम धरा है? बस यही कि परमाणु बम का प्रयोग नहीं किया है? पर किया तो है! हिरोशिमा और नागासाकी पर लाख भूलो पर हम तो यही समझे कि संयम कहाँ, यह तो ...

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लेखक के बारे में
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Santosh K. Goriya

हम, अपने हृदय की गूँज को कविताओं और कहानियों के रूप में यहाँ पर संकलित कर रहे हैं केवल इसलिए कि अगले जन्म में आकर पुनः पढ सकें और देख सकें कि हमारी मनोवांछना ने कौन सा आकार धारण किया है! मैं चाहूँ, हर रूप में ढल जाऊँ खुद को सभी के भावों में पाऊँ। दुःख-दर्द उनके अपनाऊँ खोजूँ नए रास्ते, दुःख मिटाऊँ। हँसूँ-मुस्काऊँ सबके संग सबको जीवन का वैभव दिखलाऊँ।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    mamta Mahatma "विजिता"
    09 ఆగస్టు 2024
    सहमत संयम तो कुदरत और इस समूची धरा ने ,धरा है बहुत खूब dii लाजवाब 🌺🌺🌺🌺🏵️🌺🏵️🏵️🌺🏵️🌺🌺☘️🌺☘️🌺
  • author
    rima thakur
    09 ఆగస్టు 2024
    बहुत-बहुत बढ़िया लगी ऐसे ही लिखते रहना धन्यवाद
  • author
    Sushma Sharma
    09 ఆగస్టు 2024
    बिल्कुल सहमत संयम तो धरती मां ने धरा है बहुत सुंदर रचना।
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    mamta Mahatma "विजिता"
    09 ఆగస్టు 2024
    सहमत संयम तो कुदरत और इस समूची धरा ने ,धरा है बहुत खूब dii लाजवाब 🌺🌺🌺🌺🏵️🌺🏵️🏵️🌺🏵️🌺🌺☘️🌺☘️🌺
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    rima thakur
    09 ఆగస్టు 2024
    बहुत-बहुत बढ़िया लगी ऐसे ही लिखते रहना धन्यवाद
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    Sushma Sharma
    09 ఆగస్టు 2024
    बिल्कुल सहमत संयम तो धरती मां ने धरा है बहुत सुंदर रचना।