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"संतोषम परम सुखम"

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हर इंसान एक दूसरे से, जलता क्यों है, मुकद्दर में नही, उसके लिए रोता क्यों है। कर्म जैसा है, फल वैसा ही मिलता है, हर दरो - दिवार, सर पटकता क्यों है।। जलाया न दिया, अंधेरा भगाने के लिए, फिर ...

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लेखक के बारे में
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Karishma Shrivastava

मै इस प्रतिलिपि के महासागर में ओस के बूंद के तरह हूँ |🙏

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Ish K. Arora
    16 जुलाई 2023
    जी , बहुत खूबसूरत लिखा है आपने। आपने प्रत्येक बंद में एक प्रश्न रखा है पाठकों के समक्ष। यदि प्रत्येक बंद की पहली पंक्ति को समझ लिया जाए तो स्वतः ही उत्तर भी मिल जाता है।
  • author
    Amarnath Srivastava
    16 जुलाई 2023
    क्या बात है.. आज तो पूरा का पूरा करिश्मा कर दिया... नादान हैं वो लोग समझते नहीं शायद हर दर-ओ-दीवार पे मुँह मारना तौहीन-ए-वफा होती है...!
  • author
    16 जुलाई 2023
    the great thought..... हर इन्साँ के अन्दर बसता है परवरदीगार, न जाने फिर क्यूँ,..रहता है हरदम लाचार... 🌿🔵🟣🌿
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    Ish K. Arora
    16 जुलाई 2023
    जी , बहुत खूबसूरत लिखा है आपने। आपने प्रत्येक बंद में एक प्रश्न रखा है पाठकों के समक्ष। यदि प्रत्येक बंद की पहली पंक्ति को समझ लिया जाए तो स्वतः ही उत्तर भी मिल जाता है।
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    Amarnath Srivastava
    16 जुलाई 2023
    क्या बात है.. आज तो पूरा का पूरा करिश्मा कर दिया... नादान हैं वो लोग समझते नहीं शायद हर दर-ओ-दीवार पे मुँह मारना तौहीन-ए-वफा होती है...!
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    16 जुलाई 2023
    the great thought..... हर इन्साँ के अन्दर बसता है परवरदीगार, न जाने फिर क्यूँ,..रहता है हरदम लाचार... 🌿🔵🟣🌿