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सेंटाक्लाज

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3.7

इस बार सेंटाक्लाज तुम लाना ये उपहार भर देना मानस मन मे दया भाव और प्यार झगड़े फसाद को उठाये वो हर जङ मिटा देना प्रेम अंहिसा और मैत्री भाव को हर मन मे बिठा देना अभी भी चित्कार रही उन मासूमों की पुकार ...