व्यंग्य -- संत बाबा, जेल और मेरे फूटे कर्म -- कभी मैंने सोचा था कि अब थोड़ा पढ़-लिख, समझदार हो गया हूँ! चलो, बाबा आसाराम बाबू का शिष्य ही बन जाऊँ या उनके पुत्र श्री नारायण साँई के चरणों में ही ...

प्रतिलिपिव्यंग्य -- संत बाबा, जेल और मेरे फूटे कर्म -- कभी मैंने सोचा था कि अब थोड़ा पढ़-लिख, समझदार हो गया हूँ! चलो, बाबा आसाराम बाबू का शिष्य ही बन जाऊँ या उनके पुत्र श्री नारायण साँई के चरणों में ही ...