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संसार जरूरत के नियम पर चलता है सर्दियों में जिस सूरज का इंतजार होता है गर्मियों में इसी सूरज का तिरस्कार होता है आप की कीमत कब होगी जब आपकी जरूरत होगी

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हम हमेशा उपयोगिता खोजने के लिए प्रशिक्षित किए गए हैं और किए भी जा रहे हैं हम सिर्फ जिंदगी के चेहरे बदल सकते हैं रूप बदल सकते हैं लेकिन जिंदगी से भाग नहीं सकते इससे क्या फर्क पड़ता है इसने कौन से रंग ...

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लेखक के बारे में

मैं नवीन गौड़ आध्यात्मिक दुख से दुखी हूं आध्यात्मिकता सबसे बड़ा दुख है जिसका निवारण कोई समर्थ गुरु ही कर सकता है जो अभी तक तो मिला नहीं और किसी के आगे यह दुख कहा भी नहीं जा सकता वैसे एक बात कहूं आदि अनादि श्री कृष्णा सब कुछ

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