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समर शेष यह शुरू हुआ

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4.3

क्यों ढोते उन खड्गों को, जिनमें कोई धार नहीं हो सके भी तेरे खड्गों से, अब कोई संघार नहीं नहीं धार हो जब खड्गों में उनमें तुम अब धार भरो रहे आज तक चुप बैठे पर अब तो तुम हुंकार भरो चारों ओर अराजकता का ...