
प्रतिलिपिआज तरंग सर के यहाँ से अभिनव कदम ले आई और खोलते ही एक युग भहरा कर यों गिरा की यादों की बस्ती में सैलाब आ गया. मैं चीख कर मन भर रोना चाहती हूँ. मन में हाहाकार मचा है .... जयप्रकाश सर को फोन किया ..... सर अंशु कैसे मरी ?....एक लम्बी साँस छोड़ कर उन्होने बुझे मन से कहा .... तुम सोचना कैसे मरी .....तुम उसे जानती हो ? सर ने पूछा ....जी .. मेरी क्लास मेट थी. जयप्रकाश धूमकेतु सर ने उसकी कविताओं से बड़ी ही मर्मभेदी पंक्ति शीर्षक के लिये चुना था ... "मौन बेबस बाँसुरी कोने लगी " ,पहली ही पंक्ति ....अंशुरानी ...
रिपोर्ट की समस्या
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