लड़कों की तो सारी कहानी सुना दी आपने ,पर जब लड़की किसी लड़के के साथ दो चार साल लिव इन में रहने के बाद शादी के झूठे वादे करके संबंध बनाने का आरोप लगाए तो क्या वो भी इतनी ही मासूमियत है जितना आपने बखान किया शुचिता और अस्मिता के नाम पर।एकतरफा मत सोचिये।हर फायदे वाली चीज का साइड इफ़ेक्ट भी होता है ।जान बूझ कर कुएँ में कूदना मासूमियत नही कहलाती और ना ही हर पुरुष बलात्कारी होता है जैसा कि आप साबित करना चाहती हैं।
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श्रमा चाहूँगा, परंतू औरतों को स्वयं को बदलना होगा, जो कुछ हमारे दकियानूसी संस्कारों के नाम पर औरतों को चुप चाप सहने के लिऐ उन्ही की बङी- बुढ़ी औरतों द्वारा बचपन से सिखाया जाता है सरासर गलत है। और जहाँ तक लङकों की बात है उन्हें बचपन से ही लङकियों की इज्जत करना सिखाना पङेगा अगर बचपन से लङकों को संस्कार दिऐ जाऐं तो समाज बदलने में ज्यादा सहयोग होगा।
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बलात्कार की सहमति कोई नही देता मैडम जी। और कोई परिवार अपने बच्चे कोई रेप करने का संस्कार नही देते। ये तो लोग गलत संगत और चाल चलन का नतीजा है। मैं दोनो की गलती देता हूँ। क्योंकि जब रेप होता है तो कोई ये नही कहता कि मेरी गलती है। लड़की का कहना होता है कि ``मै तो अपने रास्ते जा रही थी वही आया`` और लड़के कब अपनी गलती मानते है।
मैं भी लड़का हूँ पर I respect woman. और आपलोगो की इन कहानियों को पढ़ कर और इजात करने का मन करता है।
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