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सहज भाव से चलते रहना

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सहज भाव से चलते रहना हो राह कटीली पथरीली, आँधी तूफ़ानों से हो भरी जग खींच रहा हो पाँव भले और हो विषाक्त व्यवहार भले साथी लेकिन मत रुक जाना, दो डग भरकर चलते रहना सहज भाव से चलते रहना ...

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लेखक के बारे में
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Dr. Prachi sharma kaur

नाम- डॉ प्राची शर्मा माता- पिता- श्रीमती मनोरमा शर्मा एवं श्री एस. बी. शर्मा जन्म 10/12/1983 शिक्षा- एम. ए.,, बी.एड.एल.एल. बी.,पी-एच. डी., नेट (एस.आर.एफ.) संप्रति- प्रवक्ता जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान कानपुर देहात रचनाएँ- अरुण कमल एवं समकालीन हिंदी कविता (आलोचनात्मक पुस्तक) सामाजिक मुद्दों पर कविता और कहानी लिखती हूं |किसी एक बंधन में बंधकर किसी एक वर्ग के लिए मेरा लेखन नहीं है| मेरी कविताएं संवेदना से जुड़ी हुई है, संवेदनाएं जो आपको भी संवेदित कर देंगी

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