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रहीम के सोरठे

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4.1

ओछे को सतसंग, रहिमन तजहु अँगार ज्‍यों । तातो जारै अंग, सीरो पै करो लगै ।। रहिमन कीन्‍हीं प्रीति, साहब को भावै नहीं । जिनके अगनित मीत, हमैं गीरबन को गनै ।। रहिमन जग की रीति, मैं देख्‍यो रस ऊख में ...