ओछे को सतसंग, रहिमन तजहु अँगार ज्यों । तातो जारै अंग, सीरो पै करो लगै ।। रहिमन कीन्हीं प्रीति, साहब को भावै नहीं । जिनके अगनित मीत, हमैं गीरबन को गनै ।। रहिमन जग की रीति, मैं देख्यो रस ऊख में ...
ओछे को सतसंग, रहिमन तजहु अँगार ज्यों । तातो जारै अंग, सीरो पै करो लगै ।। रहिमन कीन्हीं प्रीति, साहब को भावै नहीं । जिनके अगनित मीत, हमैं गीरबन को गनै ।। रहिमन जग की रीति, मैं देख्यो रस ऊख में ...