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प्यारी बिटिया

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पुत्र मोह की छोड़ लालसा, स्रजनी की रक्षा तू कर अपना भाग्य संग लाएगी, पालन की इच्छा तो कर गाँठ बाँध कर ह्रदय बिठा ले, बड़ी सरल सी बात है बेटी से ही कल था तेरा, बिटिया से ही आज है !! बुद्धिहीन मत बन ओ ...

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लेखक के बारे में

डॉ. हरेंद्र सिंह चाहर आगरा शहर से सम्बन्ध रखते हैं। अध्यापक पिता से लेखन विरासत में मिला है। पेशे से वैज्ञानिक डॉ. चाहर प्रतिष्ठित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली, से पीएचडी (PhD) करने के पश्चात अभी अमेरिका में विषाणु विज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत हैं। जिज्ञासाओं को उनके तार्किक अंत तक पहुँचाने के लिए विज्ञान करते हैं और मन की ख़ुशी और शांति के लिए कवितायेँ और कहानियाँ लिखते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (IHA) की त्रेमासिक पत्रिका “विश्वा” और IHA ह्यूस्टन चैप्टर की पत्रिका “गुंजन” में अनेक कवितायेँ प्रकाशित । इसी के साथ अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम “हिंदी कविता की शाम”, “होली के हिंदी बोल”, “मैं और मेरी मातृभूमि" में हर वर्ष काव्यपाठ ।

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