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प्यार की आग

4.1
666

प्यार की आग सुलगते अंगारे बुझाने को कम है सारी दरिया का पानी, तुम डुबाना चाहते हो आँसूओ के खारे समंदर में ......... मैंने रातों की नदियों में उतारी है कश्ती दिल की, जहाँ माँझी को भी पार जाने का कोई ...

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लेखक के बारे में
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सुरेश शर्मा
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Jai Sharma
    23 ಏಪ್ರಿಲ್ 2020
    सुरेश जी हमनू आपकी दोनों रचनाएं पढ़ी अच्छा लगा । भाषा शैली आपकी सरल सहज थी जिससे की आम पाठक को कविता सरलता से समझ में आ जाती है । शुक्रिया बंधु
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    18 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2015
    " मंजील" शब्द ही पर्याप्त है यह दर्शाने को , कि राष्ट्र भाषा के क, ख, ग.. ! तक की जानकारी का अभाव है । नितांत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
  • author
    03 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2022
    👍✍️🌷
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  • author
    Jai Sharma
    23 ಏಪ್ರಿಲ್ 2020
    सुरेश जी हमनू आपकी दोनों रचनाएं पढ़ी अच्छा लगा । भाषा शैली आपकी सरल सहज थी जिससे की आम पाठक को कविता सरलता से समझ में आ जाती है । शुक्रिया बंधु
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    18 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2015
    " मंजील" शब्द ही पर्याप्त है यह दर्शाने को , कि राष्ट्र भाषा के क, ख, ग.. ! तक की जानकारी का अभाव है । नितांत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
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    03 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2022
    👍✍️🌷