बुढ़ापे में अकेलेपन से बड़ी कोई त्रासदी नहीं। ऐसे समय मन यादों की गलियों में टहलने को मचल उठता है और किसी मोड़ पर ठिठका खड़ा सच जब अचानक सामने आ जाये तो क्या होता है?
बुढ़ापे में अकेलेपन से बड़ी कोई त्रासदी नहीं। ऐसे समय मन यादों की गलियों में टहलने को मचल उठता है और किसी मोड़ पर ठिठका खड़ा सच जब अचानक सामने आ जाये तो क्या होता है?