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प्रेतनी का मायाजाल

4.1
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मध्य जुलाई का समय और रात के करीब 11 बज रहे होंगे। रात की कालिमा को बादलों की काली घटा ने और भी भयानक रूप से काली-कलूटी बना दिया था। खैर इस भयावह, सन्नाटेदार अँधियारी रात की परवाह न करते हुए ...

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लेखक के बारे में

प्रभाकर पाण्डेय जन्मतिथि :०१-०१-१९७६ जन्म-स्थान :गोपालपुर, पथरदेवा, देवरिया (उत्तरप्रदेश) शिक्षा :एम.ए (हिन्दी), एम. ए. (भाषाविज्ञान)  पिछले 18-19 सालों से हिन्दी की सेवा में तत्पर। पूर्व शोध सहायक (Research Associate), भाषाविद् के रूप में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) मुम्बई के संगणक एवं अभियांत्रिकी विभाग में भाषा और कंप्यूटर के क्षेत्र में कार्य। कई शोध-प्रपत्र राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में प्रस्तुत। वर्तमान में सी-डैक मुख्यालय, पुणे में कार्यरत। विभिन्न हिंदी, भोजपुरी पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन।

समीक्षा
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    Priyanka tiwari
    17 फ़रवरी 2018
    apne shi kha.... lekin aaj K samya m apni masti K alawa kuch ar dkhayi kha deta h.... kisi ka kiya kisi ko bhugtna pdta h 😠
  • author
    Mêråj "Raj"
    22 जुलाई 2018
    सुपर सर जी ये कहानी थोडी बहुत मेरे साथ घटित घटना से मेल खाती है।
  • author
    शिवांक चौधरी
    10 अगस्त 2018
    india me aisi train kha chalti hai jo bilkul khali ho
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    Priyanka tiwari
    17 फ़रवरी 2018
    apne shi kha.... lekin aaj K samya m apni masti K alawa kuch ar dkhayi kha deta h.... kisi ka kiya kisi ko bhugtna pdta h 😠
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    Mêråj "Raj"
    22 जुलाई 2018
    सुपर सर जी ये कहानी थोडी बहुत मेरे साथ घटित घटना से मेल खाती है।
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    शिवांक चौधरी
    10 अगस्त 2018
    india me aisi train kha chalti hai jo bilkul khali ho