भोंदू पसीने में तर, लकड़ी का एक गट्ठा सिर पर लिए आया और उसे जमीन पर पटककर बंटी के सामने खड़ा हो गया, मानो पूछ रहा हो 'क्या अभी तेरा मिजाज ठीक नहीं हुआ ? ' संध्या हो गयी थी, फिर भी लू चलती थी और आकाश पर गर्द छायी हुई थी। प्रकृति रक्त शून्य देह की भाँति शिथिल हो रही थी। भोंदू प्रात:काल घर से निकला था। दोपहरी उसने एक पेड़ की छाँह में काटी थी। समझा था इस तपस्या से देवीजी का मुँह सीधा हो जायगा; लेकिन आकर देखा, तो वह अब भी कोप भवन में थी। भोंदू ने बातचीत छेड़ने के इरादे से कहा, लो, एक लोटा पानी दे ...
रिपोर्ट की समस्या
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