बात जब आन की हो बिना मन के ही काम चल रहा हो सामने कोई बिना सुने अपनी बात मनमानी पर टिकाता हो तब मन में बढ़ जाता है क्रोध तभी शुरू होता है प्रतिशोध प्रतिशोध यानि बदला मन में छुपाए उलझे भाव कभी धूप ...
बात जब आन की हो बिना मन के ही काम चल रहा हो सामने कोई बिना सुने अपनी बात मनमानी पर टिकाता हो तब मन में बढ़ जाता है क्रोध तभी शुरू होता है प्रतिशोध प्रतिशोध यानि बदला मन में छुपाए उलझे भाव कभी धूप ...