वनस्पति वैज्ञानिक हूँ। सात वैज्ञानिक पुस्तकें एवं
160 शोध पत्र प्रकाशित। दो काव्य संग्रह प्रेमांजलि एवं नेहांजलि प्रकाशित। प्रस्तुत संकलन *प्रणयांजलि मेरी मानस प्रेयसी सुगंधा को समर्पित है*।स्वान्तः सुखाय् लिखता हूँ इसलिए मेरी कृतियां ही मेरा परिचय हैँ। पर साथ ही मैं यह भी मानता हूं कि साहित्य न केवल समाज का दर्पण होता है बल्कि समाज को सही दिशा भी दिखाता है। इसलिए हर कृति में समाज का चित्रण एवं मार्ग दर्शन करने वाले संदेश समाहित होना चाहिए। साहित्यकार का कोई भी लिंग, उम्र, सामाजिक स्तर, पंथ एवं धर्म नहीं होता इसलिये वह किसी भी लिंग, उम्र, सामाजिक स्तर, पंथ एवं धर्म के व्यक्तियों से संबंधित साहित्य का निर्माण कर सकता है। साहित्यकार को किसी भी प्रकार की सीमाओं में नहीं बांधा जाना चाहिए ताकि वह वह सारी बेड़ियों को तोड़ कर अनंत आकाश में उड़ सके और विहंगम दृष्टि से समाज का दर्शन, चित्रण एवं मार्ग दर्शन कर सके। जय शंकर प्रसाद, नीरज, सुमित्रा नंदन पंत, हरिवंश राय बच्चन, प्रेम चंद, शरत चंद, आचार्य चतुरसेन, वृंदावन लाल वर्मा, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी प्रिय साहित्यकार।