1-न विना परवादेन रमते दुर्जनोजन:। काक:सर्वरसान भुक्ते विनामध्यम न तृप्यति ॥ भावार्थ : लोगों की निंदा (बुराई) किये बिना दुष्ट (बुरे) व्यक्तियों को आनंद नहीं आता। जैसे कौवा सब रसों का भोग करता है ...
नलिनीदलगतजलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्। विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं,लोक शोकहतं च समस्तम्॥
भावार्थ :
जीवन कमल-पत्र पर पड़ी हुई पानी की बूंदों के समान अनिश्चित एवं अल्प (क्षणभंगुर) है। यह समझ लो कि समस्त विश्व रोग, अहंकार और दु:ख में डूबा हुआ है ।
सारांश
नलिनीदलगतजलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्। विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं,लोक शोकहतं च समस्तम्॥
भावार्थ :
जीवन कमल-पत्र पर पड़ी हुई पानी की बूंदों के समान अनिश्चित एवं अल्प (क्षणभंगुर) है। यह समझ लो कि समस्त विश्व रोग, अहंकार और दु:ख में डूबा हुआ है ।
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