pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

प्रकृति प्रभु के आधीन

0

बीज उर्वरा मही पर रोपा जाता, हवा उसे दुहराती है| वर्षा उसका पोषण करती, धूप ऊर्जा वान बनाती है | तब जाकर पौध पनपता है, जब प्रकृति रक्षण करती है| इतने पर जब पौध पेड़ बने, दुनियाँ फल की आश लगाती है| ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
PANKAJ KUMAR SRIVASTAVA
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है