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प्रकृति का संदेश

आध्यात्मिकप्रेरणा
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पर्वतों से नज़रें मिलाता, छू रहा आसमान हूँ। नदी में कंकड़ गिराता, क्यूँ इतना नादान हूँ। ठंडी हवा की ये लहरें, यूँ ऐसी इठला रही। लहराते देवदार तरु को कुछ तो है बतला रही। नदियों की कलकल ध्वनि में, ...