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प्रचलन नया नया।

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दीप जले खुशियों रहीं, मन न रहीं उमंग, हर उत्सव का ही मिले, वदला वदला ढ़ंग। अपने मुंह मिट्ठू बनने का, प्रचलन नया नया है, मिले लालसा भारी लेकिन, नीयत रहती तंग।। ...