कल की ही बात है। रात का सन्नाटा पसरा था और भीतर कोई अनकहा बोझ था — शरीर कुछ थका हुआ, मन कुछ भारी, और शायद तबीयत भी कहीं ग़ुमसुम सी। पर मैं निकला… रोज़ की तरह। कानों में वही bluetooth — और उसमें बहती ...
कल की ही बात है। रात का सन्नाटा पसरा था और भीतर कोई अनकहा बोझ था — शरीर कुछ थका हुआ, मन कुछ भारी, और शायद तबीयत भी कहीं ग़ुमसुम सी। पर मैं निकला… रोज़ की तरह। कानों में वही bluetooth — और उसमें बहती ...