कविता -हार जीत ना तुम हारे,ना मै जीती, ना तुम जीते,ना मै हारी तुझमे मुझमे हार जीत का प्रश्न कहाँ? तुम देते रहे समर्पण और मै भी। फिर इसमे हार-जीत का प्रश्न कहाँ? तुमने दीया जलाया प्रणय का,नेह का ...
मन में उठने वाली पीड़ा कब कहानी बनकर बाहर आ
जाती है।समाज में घटित घटनाएं मन को अवसाद देती है।समाज के लिये उपयोगी व ज्ञानवधक लिखना सूकुन देता है।अपने मन से निकले भाव कविता का रुप ले लेते हैं।अच्छी कसावदार व सच्चाई से ओतप्रोत रचना लिखूं ऐसा मेरा प्रयास है।
सारांश
मन में उठने वाली पीड़ा कब कहानी बनकर बाहर आ
जाती है।समाज में घटित घटनाएं मन को अवसाद देती है।समाज के लिये उपयोगी व ज्ञानवधक लिखना सूकुन देता है।अपने मन से निकले भाव कविता का रुप ले लेते हैं।अच्छी कसावदार व सच्चाई से ओतप्रोत रचना लिखूं ऐसा मेरा प्रयास है।
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